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GST और GST रजिस्ट्रेशन GST का फुल फॉर्म होता है – Goods &…
जज्बात
जज्बात कहूं कैसे, मेरे होंठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझड़ो का, यहां फूल नहीं खिलते।
बेकश की जिंदगी है, अरमानों पर पहरा है,
चारागर ढूंढे नहीं,दर्द ए जिगर गहरा है,
जज्बात कहूं कैसे, मेरे होंठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझडो का, यहां फूल नहीं खुलते।
सूरत है अंधेरे मैं, यहां दीप नहीं जलते।
दहरा मे उजाला है,महफिल में अंधेरा है,
ये करतूत है कुदरत की, कहीं गम का बसेरा है
डूबी हुई कस्तियों के, कहीं साहिल नहीं होते।
जज्बात कहूं कैसे,मेरे होठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझड़ो का, यहां फूल नहीं खिलते।
बेताबी के बादल हैं, बरसातें हैं तड़पती,
शबनम की शक्ल जैसे , शोलों में है,बदलती,
किस्मत के बादशाह का,हम बोझ लिए चलते।
जज्बात कहूं कैसे,मेरे होंठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझड़ों का, यहां फूल नहीं खिलते ।
कृष्णवंदना शर्मा
खामोश बेटी की आवाज
बेटी बनकर आई है। मां बाप के आंगन में कल बसेरा होगा किसके आंगन में आखिर क्यूं? ये रीत भगवान ने बनाई है, कहते हैं आज नहीं तो कल तू पराई होगी। देके जन्म पल पोसकर जिसने हमें बड़ा किया।वक्त आने पर उन्ही हाथो ने हमें विदा किया। बिखर कर रह जाती है हमारी जिंदगी। फिर उस बंधन में हमें प्यार मिले ये जरुरी तो नहीं। क्यूं हमारा रिश्ता इतना अजीव होता है। क्या यही हम बेटियों का नसीब होता है।घर जहां बेटियों का जन्म होता है। दुनियां में आते ही मानो सबके चेहरे मुरझा से गए हों। उसी भेदभाव के साथ की लड़की है,एक दिन बड़े होकर किसी का घर संभालना है,और इसी सोच के साथ उसे शिक्षा से भी दूर रखा जाता है। किताबों के बदले उसे घर के कामों का बोझ सौप दिया जाता हैं। उसके सारे अरमान जो एक उज्जवल भविष्य बनाने के होते हैं।वही अरमान उसी आग में दफन हो जाते हैं। क्या बेटियों को इतना भी हक नहीं दिया गया।की वो अपने परिवार के लिए और उनके साथ आत्म निर्भर बने और बेटा बनकर अपने परिवार को सहयोग करे। जिस परिवार में बेटे नहीं होते उस परिवार में बेटी हो तो कोन सहारा बनेगा उसके मां बाप का। तब वही बेटी या बहू बनकर अपना परिवार संभालती है।चाहें वो मेहनत या मजदूरी करे या कुछ भी अपना फर्ज निभाती है। तो फिर क्यूं ना उसे पड़ा लिखा कर काबिल बनाए आज भी कुछ लोग हैं।जो बेटियों को बोझ समझते हैं।आज भी अधिकांश लोग बेटो को ही सारे हक देते हैं।चाहे वो अपनी जिम्मेदारी समझे या ना समझे या मां बाप के पैसों का गलत उपयोग करें।पर उनकी हर गलतियों को माफ किया जाता हैं। बेटी कभी अपने मां बाप को टूटता नहीं देख सकती वो अपनी सारी खुशियों को मिटा कर अपने परिवार का ध्यान रखती हैं।अपनी जिम्मेदारियों को समझती है,और निभाती भी है,वो दो परिवारों को समेट कर चलती है।अपनी तकलीफ कभी किसी को महसूस तक नहीं होने देती हैं। ऐसी होती हैं,
Bahut kuch likh kar, Mitaya hai meine. Theek na hone pr,bhi,Theek bataya…
जिस क्लास मैं और वो साथ में बैठते थे, बस 10 बारह…
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जज्बात कहूं कैसे, मेरे होंठ नहीं खुलते,
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चारागर ढूंढे नहीं,दर्द ए जिगर गहरा है,
जज्बात कहूं कैसे, मेरे होंठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझडो का, यहां फूल नहीं खुलते।
सूरत है अंधेरे मैं, यहां दीप नहीं जलते।
दहरा मे उजाला है,महफिल में अंधेरा है,
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डूबी हुई कस्तियों के, कहीं साहिल नहीं होते।
जज्बात कहूं कैसे,मेरे होठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझड़ो का, यहां फूल नहीं खिलते।
बेताबी के बादल हैं, बरसातें हैं तड़पती,
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किस्मत के बादशाह का,हम बोझ लिए चलते।
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मौसम है पतझड़ों का, यहां फूल नहीं खिलते ।
कृष्णवंदना शर्मा
खामोश बेटी की आवाज
बेटी बनकर आई है। मां बाप के आंगन में कल बसेरा होगा किसके आंगन में आखिर क्यूं? ये रीत भगवान ने बनाई है, कहते हैं आज नहीं तो कल तू पराई होगी। देके जन्म पल पोसकर जिसने हमें बड़ा किया।वक्त आने पर उन्ही हाथो ने हमें विदा किया। बिखर कर रह जाती है हमारी जिंदगी। फिर उस बंधन में हमें प्यार मिले ये जरुरी तो नहीं। क्यूं हमारा रिश्ता इतना अजीव होता है। क्या यही हम बेटियों का नसीब होता है।घर जहां बेटियों का जन्म होता है। दुनियां में आते ही मानो सबके चेहरे मुरझा से गए हों। उसी भेदभाव के साथ की लड़की है,एक दिन बड़े होकर किसी का घर संभालना है,और इसी सोच के साथ उसे शिक्षा से भी दूर रखा जाता है। किताबों के बदले उसे घर के कामों का बोझ सौप दिया जाता हैं। उसके सारे अरमान जो एक उज्जवल भविष्य बनाने के होते हैं।वही अरमान उसी आग में दफन हो जाते हैं। क्या बेटियों को इतना भी हक नहीं दिया गया।की वो अपने परिवार के लिए और उनके साथ आत्म निर्भर बने और बेटा बनकर अपने परिवार को सहयोग करे। जिस परिवार में बेटे नहीं होते उस परिवार में बेटी हो तो कोन सहारा बनेगा उसके मां बाप का। तब वही बेटी या बहू बनकर अपना परिवार संभालती है।चाहें वो मेहनत या मजदूरी करे या कुछ भी अपना फर्ज निभाती है। तो फिर क्यूं ना उसे पड़ा लिखा कर काबिल बनाए आज भी कुछ लोग हैं।जो बेटियों को बोझ समझते हैं।आज भी अधिकांश लोग बेटो को ही सारे हक देते हैं।चाहे वो अपनी जिम्मेदारी समझे या ना समझे या मां बाप के पैसों का गलत उपयोग करें।पर उनकी हर गलतियों को माफ किया जाता हैं। बेटी कभी अपने मां बाप को टूटता नहीं देख सकती वो अपनी सारी खुशियों को मिटा कर अपने परिवार का ध्यान रखती हैं।अपनी जिम्मेदारियों को समझती है,और निभाती भी है,वो दो परिवारों को समेट कर चलती है।अपनी तकलीफ कभी किसी को महसूस तक नहीं होने देती हैं। ऐसी होती हैं,
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