फ़ोन से ही प्यार को लाइफ टाइम निभाने का वादा

बात कुछ उन दिनों की है जब वो  एक शहर में नौकरी करने की शुरुआत ही की थी उसी शहर में उस का एक दोस्त रहता था , उस दोस्त से दोस्ती कुछ इस तरह की थी की उस के घर आना जाना हमेसा रहता था कभी कभी उस के घर पर ही रुकना हो जाया करता था

एक दिन की बात है वो लड़का उस अपने दोस्त के घर ही रुका तो शाम को  मौसम इतना सुहाना था की मन किया की छत पर टहलने निकला जाये और बो टहलने निकल गया , कुछ देर छत पर टहल ही रहा था की उस की नजर घर के सामने बाली छत पर गई बहा एक लड़की खड़ी  थी  उस लडके की तरफ देख रही थी अचानक से उस  लडके नजर उस लड़की से मिलती है जैसे ही उन की नजर एक दूसरे से मिली थी की बो लड़की उस की तरफ इस तरह मुस्कराहट के साथ देखा जैसे बो उसी लडके के देखने का बहुत देर से इंतज़ार कर रही थी ,  इसी मुस्कराहट के बाद बो लड़की नीचे चली जाती है और लड़का उस का इंतज़ार करते करते फिर नीचे चला जाता है

अब बो लड़का बस ये मौका देखता था की कब उस दोस्त के घर कोई काम पड़े और बो बहा जाये और उस से नजर मिले , इसी टाक में बो बार बार उस दोस्त के घर जाने लगा किसी न किसी बहाने से वो लड़की भी यही देखती रहती थी की वो आया तो नहीं है ऐसे ही काफी दिनों तक बो कही छत से या कभी गेट खड़ी हो कर उस लडके से नजर जरूर मिलती थी कभी कभी अब तो इसारो ही इसारो में उन की बात हो जाती थी

एक दिन की बात है उस लडके के दोस्त की किसी रिश्तेदारी में शादी थी दोस्त के सारे घर बाले उस शादी में जा रहे थे और मुझे उन के घर पर ही रुकना था जैसे ही वो लोग निकले वो उन के घर पहुंच गया था , अब बस उसे  इंतज़ार था तो शाम होने का था जैसे ही हलकी हलकी शाम हुए बो छत पर घूमने लगा और उस के आने का इंतज़ार कर रहा था थोड़ा सा अँधेरा हुआ की वो लड़की भी ऊपर आ गई अब वो लड़का तो उसी का इंतज़ार कर रहा था उस को देखते ही एक दूसरे के इसारे चालू हो गए बहुत देर बाद उस लडके ने इशारो ही इशारो में नंबर मांग लिया , लड़की ने अपनी उंगलियों के इशारो से ही नंबर बता दिया और दोनों नीचे चले गए |

अब उनके प्यार की कहानी मोबाइल से ही आगे बढ़ाने लगी वो एक दूसरे को प्यार करने लगे थे अब बो लड़का जब भी अपने दोस्त के घर जाता था उसे लड़की को फ़ोन पर बता कर जाता था इस बहाने वो एक  दूसरे  को देख लेते थे उन की ये कहानी एक ऐसे प्यार के मोड पर जा पहुंची की उस लड़की की शादी तय हो गई फिर भी बो दोनों अपने प्यार को हमेसा के लिए कायम बना कर रखना चाहते है

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खामोश बेटी की आवाज

बेटी बनकर आई है। मां बाप के आंगन में कल बसेरा होगा किसके आंगन में आखिर क्यूं? ये रीत भगवान ने बनाई है, कहते हैं आज नहीं तो कल तू पराई होगी। देके जन्म पल पोसकर जिसने हमें बड़ा किया।वक्त आने पर उन्ही हाथो ने हमें विदा किया। बिखर कर रह जाती है हमारी जिंदगी। फिर उस बंधन में हमें प्यार मिले ये जरुरी तो नहीं। क्यूं हमारा रिश्ता इतना अजीव होता है। क्या यही हम बेटियों का नसीब होता है।घर जहां बेटियों का जन्म होता है। दुनियां में आते ही मानो सबके चेहरे मुरझा से गए हों। उसी भेदभाव के साथ की लड़की है,एक दिन बड़े होकर किसी का घर संभालना है,और इसी सोच के साथ उसे शिक्षा से भी दूर रखा जाता है। किताबों के बदले उसे घर के कामों का बोझ सौप दिया जाता हैं। उसके सारे अरमान जो एक उज्जवल भविष्य बनाने के होते हैं।वही अरमान उसी आग में दफन हो जाते हैं। क्या बेटियों को इतना भी हक नहीं दिया गया।की वो अपने परिवार के लिए और उनके साथ आत्म निर्भर बने और बेटा बनकर अपने परिवार को सहयोग करे। जिस परिवार में बेटे नहीं होते उस परिवार में बेटी हो तो कोन सहारा बनेगा उसके मां बाप का। तब वही बेटी या बहू बनकर अपना परिवार संभालती है।चाहें वो मेहनत या मजदूरी करे या कुछ भी अपना फर्ज निभाती है। तो फिर क्यूं ना उसे पड़ा लिखा कर काबिल बनाए आज भी कुछ लोग हैं।जो बेटियों को बोझ समझते हैं।आज भी अधिकांश लोग बेटो को ही सारे हक देते हैं।चाहे वो अपनी जिम्मेदारी समझे या ना समझे या मां बाप के पैसों का गलत उपयोग करें।पर उनकी हर गलतियों को माफ किया जाता हैं। बेटी कभी अपने मां बाप को टूटता नहीं देख सकती वो अपनी सारी खुशियों को मिटा कर अपने परिवार का ध्यान रखती हैं।अपनी जिम्मेदारियों को समझती है,और निभाती भी है,वो दो परिवारों को समेट कर चलती है।अपनी तकलीफ कभी किसी को महसूस तक नहीं होने देती हैं। ऐसी होती हैं,