जिंदगी

जिंदगीहै,तो बस एक बहता हुआ समंदर,

कहींगहरा,तो कहीं समतल।

डूबजातेहैं,लोग इसकी गहराई में,

और फंस जाते हैं,बीच मझधार में।

      जिंदगी है, तो बस एक बहता हुआ समंदर,

      कहीं गहरा,तो कहीं समतल।

उम्मीदों के साये में यहां,मिलते झूठे साहिल,

साहिलो को भी ठुकरा देती,ये सागर की लहरें।जब चली वक्त की आंधी, तोथामाउसबरीशने

जिसने तोड़े ख्वाहिशों के वो, आशियाने।

     जिंदगी है,तो बस एक बहता हुआ समंदर,

      कहीं गहरा तो कहीं समतल।

सागर,साहिल, लहरें, बारिश है, चारों में,

कितना अन्तर।

        ख्वाहिशों की कस्ती का न,

         मिला कहीं पर साहिल।

साहिलों से टकराती है,

खामोश बनी ये लहरें।

        फिर भी उमंग लिए ये, चलती,

         संगम से है,मिलना।

मिले बीच मझधार में न,

जाने कितने पत्थर ।

        भरा जोश मंजिल तक है,जाना,

        ये है, हमने लहरों से सीखा।

जिदंगी है,तो बस एक बहता हुआ समंदर,

कहीं गहरा,तो कहीं समतल।

       अगर संभल कर है, निकलना,

       तो सहीलों को है, परखना।

क्या पता वक्त कब करबट बदले,

लहरों की तरह है,चलना।

      जिंदगी है,तो बस एक बहता हुआ समंदर,

      कहीं गहरा, तो कहीं समतल।

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खामोश बेटी की आवाज

बेटी बनकर आई है। मां बाप के आंगन में कल बसेरा होगा किसके आंगन में आखिर क्यूं? ये रीत भगवान ने बनाई है, कहते हैं आज नहीं तो कल तू पराई होगी। देके जन्म पल पोसकर जिसने हमें बड़ा किया।वक्त आने पर उन्ही हाथो ने हमें विदा किया। बिखर कर रह जाती है हमारी जिंदगी। फिर उस बंधन में हमें प्यार मिले ये जरुरी तो नहीं। क्यूं हमारा रिश्ता इतना अजीव होता है। क्या यही हम बेटियों का नसीब होता है।घर जहां बेटियों का जन्म होता है। दुनियां में आते ही मानो सबके चेहरे मुरझा से गए हों। उसी भेदभाव के साथ की लड़की है,एक दिन बड़े होकर किसी का घर संभालना है,और इसी सोच के साथ उसे शिक्षा से भी दूर रखा जाता है। किताबों के बदले उसे घर के कामों का बोझ सौप दिया जाता हैं। उसके सारे अरमान जो एक उज्जवल भविष्य बनाने के होते हैं।वही अरमान उसी आग में दफन हो जाते हैं। क्या बेटियों को इतना भी हक नहीं दिया गया।की वो अपने परिवार के लिए और उनके साथ आत्म निर्भर बने और बेटा बनकर अपने परिवार को सहयोग करे। जिस परिवार में बेटे नहीं होते उस परिवार में बेटी हो तो कोन सहारा बनेगा उसके मां बाप का। तब वही बेटी या बहू बनकर अपना परिवार संभालती है।चाहें वो मेहनत या मजदूरी करे या कुछ भी अपना फर्ज निभाती है। तो फिर क्यूं ना उसे पड़ा लिखा कर काबिल बनाए आज भी कुछ लोग हैं।जो बेटियों को बोझ समझते हैं।आज भी अधिकांश लोग बेटो को ही सारे हक देते हैं।चाहे वो अपनी जिम्मेदारी समझे या ना समझे या मां बाप के पैसों का गलत उपयोग करें।पर उनकी हर गलतियों को माफ किया जाता हैं। बेटी कभी अपने मां बाप को टूटता नहीं देख सकती वो अपनी सारी खुशियों को मिटा कर अपने परिवार का ध्यान रखती हैं।अपनी जिम्मेदारियों को समझती है,और निभाती भी है,वो दो परिवारों को समेट कर चलती है।अपनी तकलीफ कभी किसी को महसूस तक नहीं होने देती हैं। ऐसी होती हैं,