कोरोना वायरस को ले कर कुछ महत्पूर्ण जानकारी

covid -19 इस महामारी को रोकने के लिए भारत द्वारा अहम् कदम 24 मार्च सम्पूर्ण भारत को बंद कर उठाया गया, 43 दिन के इस दौर में जानत और सरकार बहुत सारी कोसिसि के बाद भी आज हमारे भारत में 6,98,134 (6 जुलाई ) लोग इस महामारी का शिकार हो चुके है, अगर जनता और सरकार ये कोसिस न की होती तो आप अंदाजा लगा सकते है की आज हम जहा खड़े बहा नहीं कही और ही होते।

भारत के लिए अच्छी खबर ये है की यहाँ लगभग 4,24,891 (6 जुलाई ) इस महामारी से ठीक हो कर अपने घर जा चुके है पर सब से चिंता की बात ये है की इस महामारी ने 19,700 (6 जुलाई ) लोगो की जान ले ली है।

इस महामारी से दुनिया को मानव त्रासदी के साथ साथ आर्थिक हानि का भी सामना करना पड़ेगा, अब ये तो आगे जा कर सामने आएगा की हम किस हद तक इन सब से निपट पाएंगे अभी तो ये तक कहा जा रहा है की ,जब तक इस महामारी की कोई बेक्सीन नहीं बन जाती तो इस का इलाज़ बस सामाजिक दूरी है।
इस महामारी के दौर में बहुत सारी कंपनी घर से ही काम करा रही है पर घर से काम आखिर कब तक हो सकता है क्युकि किसी काम लिए हमें एक सिस्टम की जरूरत होती है इस लिए हमें आर्थिक कमजोरी से उभरने के लिए हमारी आर्थिक गतिबिधि सुचारु रूप से चलना बहुत जरुरी है

इस महामारी से बचने के लिए हमें कुछ सभधानी रखने की जरूरत है
1. आपस में काम से काम २ फ़ीट की दूरी बनाये रखे।
2. मास्क या गमछा से अपने फेस को ढक के रखे.
3. अपने हाथ अच्छे धोये और बार बार धोये।
4. पीने के लिए गरम पानी ही उपयोग में लाये।
5. अपने इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत करने के लिए योग करे संथारा, नीबू ,एलोवीरा का उपयोग करे .
6. स्वास्थ मत्रालय दिए गए निर्देशों का पालन करे

ये पहला मौका आया है जिस में हम खुद का बचाब खुद कर सकते है इस लिए हमें खुद से ध्यान रख कर चलना पड़ेगा, इस महामारी और आर्थिक इस्थिति का सामना हम बस धैर्य रख कर ही कर सकते है .

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  • Posted May 15, 2020 at 6:28 am 0Likes

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खामोश बेटी की आवाज

बेटी बनकर आई है। मां बाप के आंगन में कल बसेरा होगा किसके आंगन में आखिर क्यूं? ये रीत भगवान ने बनाई है, कहते हैं आज नहीं तो कल तू पराई होगी। देके जन्म पल पोसकर जिसने हमें बड़ा किया।वक्त आने पर उन्ही हाथो ने हमें विदा किया। बिखर कर रह जाती है हमारी जिंदगी। फिर उस बंधन में हमें प्यार मिले ये जरुरी तो नहीं। क्यूं हमारा रिश्ता इतना अजीव होता है। क्या यही हम बेटियों का नसीब होता है।घर जहां बेटियों का जन्म होता है। दुनियां में आते ही मानो सबके चेहरे मुरझा से गए हों। उसी भेदभाव के साथ की लड़की है,एक दिन बड़े होकर किसी का घर संभालना है,और इसी सोच के साथ उसे शिक्षा से भी दूर रखा जाता है। किताबों के बदले उसे घर के कामों का बोझ सौप दिया जाता हैं। उसके सारे अरमान जो एक उज्जवल भविष्य बनाने के होते हैं।वही अरमान उसी आग में दफन हो जाते हैं। क्या बेटियों को इतना भी हक नहीं दिया गया।की वो अपने परिवार के लिए और उनके साथ आत्म निर्भर बने और बेटा बनकर अपने परिवार को सहयोग करे। जिस परिवार में बेटे नहीं होते उस परिवार में बेटी हो तो कोन सहारा बनेगा उसके मां बाप का। तब वही बेटी या बहू बनकर अपना परिवार संभालती है।चाहें वो मेहनत या मजदूरी करे या कुछ भी अपना फर्ज निभाती है। तो फिर क्यूं ना उसे पड़ा लिखा कर काबिल बनाए आज भी कुछ लोग हैं।जो बेटियों को बोझ समझते हैं।आज भी अधिकांश लोग बेटो को ही सारे हक देते हैं।चाहे वो अपनी जिम्मेदारी समझे या ना समझे या मां बाप के पैसों का गलत उपयोग करें।पर उनकी हर गलतियों को माफ किया जाता हैं। बेटी कभी अपने मां बाप को टूटता नहीं देख सकती वो अपनी सारी खुशियों को मिटा कर अपने परिवार का ध्यान रखती हैं।अपनी जिम्मेदारियों को समझती है,और निभाती भी है,वो दो परिवारों को समेट कर चलती है।अपनी तकलीफ कभी किसी को महसूस तक नहीं होने देती हैं। ऐसी होती हैं,