जज्बात
जज्बात कहूं कैसे, मेरे होंठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझड़ो का, यहां फूल नहीं खिलते।
बेकश की जिंदगी है, अरमानों पर पहरा है,
चारागर ढूंढे नहीं,दर्द ए जिगर गहरा है,
जज्बात कहूं कैसे, मेरे होंठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझडो का, यहां फूल नहीं खुलते।
सूरत है अंधेरे मैं, यहां दीप नहीं जलते।
दहरा मे उजाला है,महफिल में अंधेरा है,
ये करतूत है कुदरत की, कहीं गम का बसेरा है
डूबी हुई कस्तियों के, कहीं साहिल नहीं होते।
जज्बात कहूं कैसे,मेरे होठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझड़ो का, यहां फूल नहीं खिलते।
बेताबी के बादल हैं, बरसातें हैं तड़पती,
शबनम की शक्ल जैसे , शोलों में है,बदलती,
किस्मत के बादशाह का,हम बोझ लिए चलते।
जज्बात कहूं कैसे,मेरे होंठ नहीं खुलते,
मौसम है पतझड़ों का, यहां फूल नहीं खिलते ।
कृष्णवंदना शर्मा
यादें
कॉलेज की कल से छुट्टी है,
हम सब अपने घर जाएंगे ।
यादों की हवा से आंखों की,
आती नींद उड़ जायेगी,
अकेलापन खा जायेगा हमें,
जिससे तबियत घबराएगी।
सूनी सूनी आशाएं होंगी और ,
मिलन के पल पल मर जायेंगे।
कॉलेज की कल से छुट्टी हैं,
हम सब अपने घर जायेंगे ।
वीरान वीराना दिल होगा,
पतझड़ का मौसम आयेगा,
जगते जगते निकले सूरज,
तारे सब ढल जायेंगे।
कॉलेज की कल से छुट्टी है,
हम सब अपने घर जायेंगे।
पिघलेगी ये समां रोते रोते और,
वो रात कयामत की होगी,
होंठों पर आन्हें रह जाएंगीं ,
वो रस्म नियामत की क्या होगी।
कॉलेज की कल से छुट्टी है,
हम सब अपने घर जाएंगे।
बेताब जिगर होंगे दोनों चाहत के,
अरमान आंसू बनकर ढल जाएंगे।
कॉलेज की कल से छुट्टी है,
सब अपने अपने घर जायेंगें।
कृष्णवंदना शर्मा।
कृष्णा
तेरे सामने किसी का जोर नहीं चले,
तूने थामा है हाथ मेरा,अब क्या है डरना ।
तेरी कुदरत का तोहफा है,ये
क्या सूखा क्या हरियाली,
जर्रे जर्रे का मालिक तू ही,
तू ही बाग और हरियाली।
तू ही मांझी और मझधार है,
तू ही भंवर और पतवार है,
क्या डूबेगी उसकी नैया,
जिसका तू बन जाय खिबयिया।
तेरे सामने किसी का जोर न चले,
तूने थामा है हाथ मेरा,अब क्या है डरना।
देने वाला तू ऐसा, शाह भी तेरे दर पर खड़े,
तेरे कर्म की कायल दुनियां,
कर डाले तू कर्म बड़े।
सुखों का सागर पी जाएं ,
तू ,दुखों पर छाया कर देता।
दिल में दर्द हो या हो, जख्म से घायल,
सब पर रहम की मरहम भर देता तू।
दुनियां अपाहिज तेरे आगे,
जिंदा है तेरे रहम तले,
खड़े हैं हैवान सर को झुकाए,
उनका भी न जोर चले,
तू चाहे तो बीरानों की कोख में,भी फूल खिलें।
कृष्णवंदना शर्मा