जीवन

हमको जीवन ने सिखाया , गिरना और संभालना,

यही आईना है जीवन का, इससे क्या है डरना।

मौसम बदलें, बदलें हवाएं ,या छाए अंधियारे ,

रात हमेशा तक न रहेगी, फिर आएंगे उजियारे।

आश का दीप न बुझने देना, बेशक अंगारों पर चलना,

हमको जीवन ने सिखाया ,गिरना और संभालना,

यही आईना है जीवन का , इससे क्या है डरना।

पतझड़ भी आते जीवन में, इसके बाद खिलते हैं फूल।

जो पल निकल गए जीवन के, वो वापस नहीं आते

बैठ के सागर के सीने पर ,कुछ लोग हैं गुनगुनाते।

वो अपने जीवन की दास्तां, सहिलों से हैं बयां करते,

दुनियां की बंदिशों से ,हमको है दूर निकलना।

हमको जीवन ने सिखाया ,गिरना और संभालना,

यही आईना है जीवन का, इससे क्या हैडरना।

जब अपनो सेही चोट लगी हो, वो दर्द सहा नहीं जाता,

दिल दुख जाता है अपनो से ही, तो जीने से मन घबराता।

खंजर तो निकल गया दिल से, वो दर्द न जीते निकलेगा,

आशा का सूरज डूब गया, उम्मीदें जिगर संभालेंगी।

हमको जीवन ने सिखाया ,गिरना और संभालना ,

यही आईना है, जीवन का इससे क्या है डरना ।

दिल में नफरत की आग उठे, समां परबाने जल गए,

नासूर बने सब रिश्ते नाते, आंखों से खून टपकता है ।

हर सांस घृणा से बोझिल है, पत्थर दिल चलता फिरता,

चाहत बनी बला है,जो जिंदा लाश बनाया है।

हमको जीवन ने सिखाया, गिरना और संभालना,

यही आईना है जीवन का, इससे क्या है डरना ।

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खामोश बेटी की आवाज

बेटी बनकर आई है। मां बाप के आंगन में कल बसेरा होगा किसके आंगन में आखिर क्यूं? ये रीत भगवान ने बनाई है, कहते हैं आज नहीं तो कल तू पराई होगी। देके जन्म पल पोसकर जिसने हमें बड़ा किया।वक्त आने पर उन्ही हाथो ने हमें विदा किया। बिखर कर रह जाती है हमारी जिंदगी। फिर उस बंधन में हमें प्यार मिले ये जरुरी तो नहीं। क्यूं हमारा रिश्ता इतना अजीव होता है। क्या यही हम बेटियों का नसीब होता है।घर जहां बेटियों का जन्म होता है। दुनियां में आते ही मानो सबके चेहरे मुरझा से गए हों। उसी भेदभाव के साथ की लड़की है,एक दिन बड़े होकर किसी का घर संभालना है,और इसी सोच के साथ उसे शिक्षा से भी दूर रखा जाता है। किताबों के बदले उसे घर के कामों का बोझ सौप दिया जाता हैं। उसके सारे अरमान जो एक उज्जवल भविष्य बनाने के होते हैं।वही अरमान उसी आग में दफन हो जाते हैं। क्या बेटियों को इतना भी हक नहीं दिया गया।की वो अपने परिवार के लिए और उनके साथ आत्म निर्भर बने और बेटा बनकर अपने परिवार को सहयोग करे। जिस परिवार में बेटे नहीं होते उस परिवार में बेटी हो तो कोन सहारा बनेगा उसके मां बाप का। तब वही बेटी या बहू बनकर अपना परिवार संभालती है।चाहें वो मेहनत या मजदूरी करे या कुछ भी अपना फर्ज निभाती है। तो फिर क्यूं ना उसे पड़ा लिखा कर काबिल बनाए आज भी कुछ लोग हैं।जो बेटियों को बोझ समझते हैं।आज भी अधिकांश लोग बेटो को ही सारे हक देते हैं।चाहे वो अपनी जिम्मेदारी समझे या ना समझे या मां बाप के पैसों का गलत उपयोग करें।पर उनकी हर गलतियों को माफ किया जाता हैं। बेटी कभी अपने मां बाप को टूटता नहीं देख सकती वो अपनी सारी खुशियों को मिटा कर अपने परिवार का ध्यान रखती हैं।अपनी जिम्मेदारियों को समझती है,और निभाती भी है,वो दो परिवारों को समेट कर चलती है।अपनी तकलीफ कभी किसी को महसूस तक नहीं होने देती हैं। ऐसी होती हैं,