ऑनलाइन एग्जामिनेशन करने का सरल तरीके

आज के दौर में हम एक भयानक महामारी का सामना कर रहे है इस दौर में छात्रों को अपनी साडी पढ़ाई घर रह कर ही करनी पड़ रही है, तो इस दौर में हर संघठन इस का पूर्ण लाभ ले सकता है.

 

आज के समय में ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली आवस्यकता ही नहीं जरुरी भी हो गया है इस प्रणाली की विस्वसनीयता इस कदर लोगो के दीमक में बढ़ती जा रही है की हर कोई इस का प्रयोगं करने के लिए तत्पर है.

परीक्षा को तेज़ और जल्दी अंजाम देने के लिए इस प्रणाली का उपयोग हर संघठन करने के लिए तैयार है और बहुत से लोग तो इस का उसे कर पूर्ण लाभ ले रहे है हमारी कोसिस है की हर संघटन इस का पूर्ण लाभ ले सके.

हम आगे ये भी बतायेगे की इस प्रणाली का उपयोग करने के लिए आप को क्या करना होगा, पर उस से पहले, में आप को बता देता हु की इस प्रणली में एग्जाम करने के साथ साथ एग्जाम की जांच और छात्रों का रिजल्ट इत्यादि आसानी से पूर्ण कर सकते है और इस प्रणाली में हमें कागज की जरूरत नहीं होती है, तो इस में समय और धन दोनों की बचत हो जाती है .

अब हम जानते है इस को अपने संघठन में लाने के लिए क्या क्या करना होता है इस के लिए हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है. बहुत सारी ऐसी कंपनी होती है जो इस प्रकार के सिस्टम प्रदान कराती है, हम किसी भी कंपनी से बात कर के अपने सघठन के लिए ये सिस्टम ले सकते है, जिस कंपनी से हम इसे लेते है बो हमें इस की पूर्ण प्रसिक्षण प्रदान कराती है.

इस प्रकार की परीक्षा प्रणली का उपयोग कर हम लोगो के ऑनलाइन परीक्षा करा कर उन की योग्यता के आधार पर उन को अपने संघठन में शामिल कर अपने व्यापर को और आगे बड़ा सकते है।

 

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  • Posted May 15, 2020 at 6:39 am 0Likes

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खामोश बेटी की आवाज

बेटी बनकर आई है। मां बाप के आंगन में कल बसेरा होगा किसके आंगन में आखिर क्यूं? ये रीत भगवान ने बनाई है, कहते हैं आज नहीं तो कल तू पराई होगी। देके जन्म पल पोसकर जिसने हमें बड़ा किया।वक्त आने पर उन्ही हाथो ने हमें विदा किया। बिखर कर रह जाती है हमारी जिंदगी। फिर उस बंधन में हमें प्यार मिले ये जरुरी तो नहीं। क्यूं हमारा रिश्ता इतना अजीव होता है। क्या यही हम बेटियों का नसीब होता है।घर जहां बेटियों का जन्म होता है। दुनियां में आते ही मानो सबके चेहरे मुरझा से गए हों। उसी भेदभाव के साथ की लड़की है,एक दिन बड़े होकर किसी का घर संभालना है,और इसी सोच के साथ उसे शिक्षा से भी दूर रखा जाता है। किताबों के बदले उसे घर के कामों का बोझ सौप दिया जाता हैं। उसके सारे अरमान जो एक उज्जवल भविष्य बनाने के होते हैं।वही अरमान उसी आग में दफन हो जाते हैं। क्या बेटियों को इतना भी हक नहीं दिया गया।की वो अपने परिवार के लिए और उनके साथ आत्म निर्भर बने और बेटा बनकर अपने परिवार को सहयोग करे। जिस परिवार में बेटे नहीं होते उस परिवार में बेटी हो तो कोन सहारा बनेगा उसके मां बाप का। तब वही बेटी या बहू बनकर अपना परिवार संभालती है।चाहें वो मेहनत या मजदूरी करे या कुछ भी अपना फर्ज निभाती है। तो फिर क्यूं ना उसे पड़ा लिखा कर काबिल बनाए आज भी कुछ लोग हैं।जो बेटियों को बोझ समझते हैं।आज भी अधिकांश लोग बेटो को ही सारे हक देते हैं।चाहे वो अपनी जिम्मेदारी समझे या ना समझे या मां बाप के पैसों का गलत उपयोग करें।पर उनकी हर गलतियों को माफ किया जाता हैं। बेटी कभी अपने मां बाप को टूटता नहीं देख सकती वो अपनी सारी खुशियों को मिटा कर अपने परिवार का ध्यान रखती हैं।अपनी जिम्मेदारियों को समझती है,और निभाती भी है,वो दो परिवारों को समेट कर चलती है।अपनी तकलीफ कभी किसी को महसूस तक नहीं होने देती हैं। ऐसी होती हैं,